Monday, February 25, 2008

कैसे तैयार होता है आम बजट

बजट के ज़रिए केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियां तय करने का काम प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सरकार का एक कोर ग्रुप करता है.
इस कोर ग्रुप में प्रधानमंत्री के अलावा वित्त मंत्री और वित्त मंत्रालय के अधिकारी होते हैं. योजना आयोग के उपाध्यक्ष को भी इस ग्रुप में शामिल किया जाता है.
वित्त मंत्रालय की ओर से प्रशासनिक स्तर पर जो अधिकारी होते हैं उसमें वित्त सचिव के अलावा राजस्व सचिव और व्यय सचिव शामिल होते हैं.
यह कोर ग्रुप वित्त मंत्रालय के सलाहकारों के नियमित संपर्क में रहता है.
वैसे इस कोर ग्रुप का ढाँचा सरकारों के साथ बदलता भी है.
बैठकें
बजट पर वित्त मंत्रालय की नियमित बैठकों में वित्त सचिव, राजस्व सचिव, व्यय सचिव, बैंकिंग सचिव, संयुक्त सचिव (बजट) के अलावा केन्द्रीय सीमा एवं उत्पाद शुल्क बोर्ड के अध्यक्ष हिस्सा लेते हैं.
वित्तमंत्री को बजट पर मिलने वाले योजनाओं और खर्चों के सुझाव वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग को भेज दिए जाते हैं जबकि टैक्स से जुड़े सारे सुझाव वित्त मंत्रालय की टैक्स रिसर्च यूनिट (टीआरयू) को भेजे जाते हैं.
इस यूनिट का प्रमुख एक संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी होता है. प्रस्तावों और सुझावों के अध्ययन के बाद यह यूनिट कोर ग्रुप को अपनी अनुशंसाएँ भेजती है.
पूरी बजट निर्माण प्रक्रिया के समन्वय का काम वित्त मंत्रालय का संयुक्त सचिव स्तर काएक अधिकारी करता है.
बजट के निर्माण से लेकर बैठकों के समय तय करने और बजट की छपाई तक सारे कार्य इसी अधिकारी के ज़रिए होते हैं.
गोपनीयता
बजट निर्माण की प्रक्रिया को इतना गोपनीय रखा जाता है कि संसद में पेश होने तक इसकी किसी को भनक भी न लगे.
वित्तमंत्रालय दो दिन पहले पूरी तरह सील कर दिया जाता है
इस गोपनीयता को सुनिश्चित करने के लिए वित्त मंत्रालय के नार्थ ब्लाक स्थित दफ्तर को बजट पेश होने के कुछ दिनों पहले से एक अघोषित 'क़ैदखाने' में तब्दील कर दिया जाता है.
बजट की छपाई से जुड़े कुछ कर्मचारियों को यहां पुलिस व सुरक्षा एजेंसियो के कड़े पहरे में दिन-रात रहना होता है.
बजट के दो दिन पहले तो नार्थ ब्लाक में वित्त मंत्रालय का हिस्सा तो पूरी तरह सील कर दिया जाता है.
यह सब वित्त मंत्री के बजट भाषण के पूरा होने और वित्त विधेयक के रखे जाने के बाद ही समाप्त होता है.

कुछ ख़ास नहीं बदली गाँवों की तस्वीर

भारत में लगभग 15 करोड़ लोगों के पास हर दिन ख़र्च करने के लिए सिर्फ़ 12 रुपए होते हैं. ताज़ा सरकारी आँकड़ों के मुताबिक शहरों की तस्वीर थोड़ी बेहतर है.
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) ने वर्ष 2005-2006 के दौरान पूरे भारत में किए सर्वेक्षण के आधार पर ये आँकड़े दिए हैं.
ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक गाँवों में अभी भी 76 फ़ीसदी आबादी रहती है और इनमें से 19 फ़ीसदी लोग हर महीने भोजन के मद में 365 रूपए खर्च करते हैं.
शहरों में स्थिति कुछ बेहतर है. यहाँ के 22 प्रतिशत लोग प्रति दिन 19 रूपए ख़र्च करते हैं.
संयुक्त राष्ट्र के आँकड़े के मुताबिक भारत में प्रति दिन प्रति व्यक्ति आय लगभग एक डॉलर यानी 40 रूपए के आस-पास है.
एनएसएसओ के मुताबिक गाँवों में अगर कोई व्यक्ति एक दिन में सौ पैसे खर्च करता है तो उसमें 53 पैसा भोजन के मद में जाता है. इनमें 17 पैसा अनाज, आठ पैसा दूध और छह पैसा सब्जी ख़रीदने में जाता है.
दूसरी ओर शहरी लोग भोजन के मद में सिर्फ़ 40 पैसा खर्च करते हैं.
लकड़ी से जलता चूल्हा
औसत आकलन के हिसाब से पूरे देश में ग्रामीण इलाक़ों में प्रति व्यक्ति प्रति माह उपभोक्ता खर्चा 625 रूपए और शहरों में लगभग दोगुना 1171 रूपए है.
उपभोग के मामले में भी केरल अव्वल है. वहाँ के गाँवों में प्रति व्यक्ति प्रति माह सबसे ज़्यादा 1056 रूपए खाने के मद में खर्च होते हैं और शहरों के लिए ये आँकड़ा 1566 रूपए का है.
बिहार, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा का हाल सबसे बुड़ा है
दूसरे और तीसरे स्थान पर पंजाब और हरियाणा हैं. सबसे बुरा हाल छत्तीसगढ़, उड़ीसा और बिहार का है.
रिपोर्ट के मुताबिक़ शहरों में पेट भरने के लिए अनाजों पर निर्भरता कम हो रही है. जहाँ गाँवों में औसतन एक व्यक्ति हर माह लगभग 12 किलो अनाज का सेवन करता है, वहीं शहरों के लिए यह आँकड़ा लगभग दस किलो का है.
गाँवों की 19 फ़ीसदी आबादी अभी भी झोपड़ियों में रहने को मजबूर है. हालाँकि 50 फ़ीसदी लोगों ने पक्के मकान बना लिए हैं.
गाँवों में अभी भी 74 फ़ीसदी परिवारों में घर का चूल्हा सूखी लकड़ी और पत्तों से जलता है. जहाँ तक रोशनी का सवाल है तो 42 प्रतिशत परिवार इसके लिए केरोसिन तेल का सहारा लेते हैं.
जबकि अलग-अलग शहरों में 40 से 75 प्रतिशत परिवारों में गैस चूल्हा है और ईंधन का माध्यम एलपीजी.